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गणपती स्वरुप

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गणेश जी प्रथम पूज्य देव है  जिनकी पूजा हर कार्य के आरम्भ में की जाती है और हम सब ने उनकी प्रतिमा  देखी है, लेकिन उनके वास्तविक स्वरूप के बारे  में हम कम ही जानते हैं। गणेश जी का हर एक अंग का विशेष महत्व है, तो आज हम चर्चा करेंगे और जानेंगे उन विशेष  प्रतीकों के बारे में जिसका धारण करने से आप भी अपने जीवन में गणपती  के सामान विघ्नहर्ता बन सकते हैं।  हम सब ने बचपन से ही प्रभु गणेश की ये कहानी सुनी है, की उनका जन्म पार्वती ने अपने बदन के मैल से किया और अपने  स्नान कक्ष के बहार पहरा लगाने को कहा, ताकी कोई भीतर प्रवेश नहीं कर सके । तभी कुछ क्षण बाद उमापति महेश का आगमन हुआ और जब उन्होंने कैलाश में प्रवेश करना चाहा, तो  गणेश ने उन्हें रोक दिया क्योंकी उन्होंने अपने पिता को ही नहीं पहचाना। इसपर महादेव क्रोधित हो गए और क्रोधवश उस हठी बालक का शीश काट दिया, इसपर पार्वती क्रोधित हो बहार आयी और महादेव  को उस बच्चे को जीवित करने को कहा।  इसपर महादेव ने पास गुजरते एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बच्चे में लगा दिया और वह बच्चा जीवित हो उठा, जिसका नाम उन्होंने गणेश रखा।   कहानी बहुत ही सरल है और इसे ह

प्रकृति या विकृति

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                                                                           प्रकृति या विकृति  ये दोनों ही शब्दों में बस अंतर एक अक्षर और मात्रा का है, किन्तु दोनो ही शब्द एक पुरे दृश्टिकोण को बदल देती है।  प्रकृति जहाँ मनुष्य का गुण होती है वही विकृति उस विशेष गुणों की शत्रु। आज हम अधिकतर विकृतिओं को अपने जीवन में महत्व दे रहे है और अपने मूल प्रकृति से दूर भाग रहे हैं।  इसीकारण हम आज सब कुछ होते हुए भी परेशान है और रो रहे हैं। जबकि देखा जाये तो आज के युग के मनुष्य के पास अपने जीवन को सुगम बनाने के लिए बहुत से साधन उप्लब्ध हैं, किन्तु फिर भी आज हम अधिक उदासीन हैं।  जबकि हमारे पूर्वजो के पास जीवन यापन के लिए इतनी सुगमता उपलब्ध नहीं थी, परन्तु फिर भी वे हमसे अधीक प्रसन्नचित्त थे। जानना चाहेंगे ऐसा क्यों था , ऐसा इसलिए था क्योकि वो अपने प्रकृति के निकट थे।  आज १० में से ८ व्यक्ति किसी न किसी रोग से ग्रस्त है क्योंकि उसने विकृतिओं को अपनाया है। किन्तु ऐसा नहीं है की हम इसे बदल नहीं सकते अगर इसी क्षण हम अपने प्रकृति पर ध्यान दे तो आज ही हम अपने आप को स्वस्थ, प्रसन्नचि